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Wednesday, May 17, 2017

HANUMAN Vadavanal Stotra - Miraculous Stotra for Blessings of Shani Dev, the Saturn

Dear All

Sharing Here the Miraculous Hanuman Vadavanal Stotra. This is composed by Vibhishana, The Brother of Ravana. Vibhishana Praises the Powers and Valor of Hanuman and while doing so he recites the beeja mantras of Hanuman and they are so strong that if You Keep Chanting this most of the Issues of Life will subdue....

It Is Miraculous....Try It, Start it on Amavasya or any Saturday and then keep chanting daily or on Saturdays....

Here Is The Download Link - HANUMAN VADAVANAL STOTRA

if You want to read here without downloading, here it is....

|| श्री हनुमान वडवानल् स्तोत्रम् ||
श्री गणेशाय नमः 
ॐ अस्य श्री हनुमद्वडवानलस्तोत्रमन्त्रस्य | श्री रामचन्द्र ऋषिः श्री वडवानलहनुमानदेवता, 


मम्  समस्त रोग प्रशमनार्थं, आयुः आरोग्य ऐश्वर्य अभिवृध्यर्थं, समस्त पापक्षयार्थं, सीतारामचन्द्रप्रित्यर्थं  च हनुमद्वाडवानलस्तोत्रजपमहं करिष्ये   ||


ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्री महाहनुमते प्रकटपराक्रम सकल दिग्मङ्गलय् यशोवितान धवलिकृत जगत्त्रितय  वज्रदेह रुद्रावतार लङ्कापुरीदहन  उमाअमलमन्त्र 

उदधिबन्धन दशशिरःकृतान्तक सीताश्वसन् वायुपुत्र अञ्जनिगर्भसंभूत श्रीरामलक्ष्मणानन्द्कर्  कपिसैन्यप्राकार सुग्रीवसाह्य रणपर्वतोट्पाटण् कुमारब्रह्मचरिण् गंभिरनाद  सर्वपापग्रहवारण सर्वोज्वरोचाटण   डाकिनीविध्वन्सन ||


ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीरवीराय सर्वदुखनिवारणाय ग्रहमण्डल सर्वभूतमण्डल सर्वपिशाच्यमण्डल उच्चाटण   भूत ज्वर एकहिक् ज्वर द्वहिक् ज्वर त्राहिक्ज्वर चातुर्थिकज्वर संतापज्वर माहेश्वर वैष्णवज्वरान छिन्धि छिन्धि यक्ष ब्रह्मराक्षस भूत प्रेत पिशाच्चाण् उच्चाटय्   उच्चाटय्  ||


ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्री महाहनुमते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः आं हां हां हां औं सौं एहि एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते श्री महाहनुमतेश्रवणचक्षुभूतानां शाकिणीडाकिणीनां विषम्  दुष्टानां सर्वविषम्   हर हर आकाश भुवनम्  भेदय भेदय छेदय् छेदय् मारय् मारय् शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय प्रहारय  प्रहारय सकलमायां भेदय भेदय    ||  


ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्री महाहनुमते सर्व ग्रहोच्चाटण   परबलं क्षोभय क्षोभय सकल बन्धन मोक्षणम् कुरु कुरु शिरः शूल गुल्म शूल सर्व  शूलन्निर्मुलय निर्मूलय नागपाश अनन्त वासुकी तक्षक कर्कोटक कालियान यक्षकुल जलगत बिलगत रात्रिचर दिवाचर  सर्वान्निर्विषं कुरु कुरु स्वाहा ||


राजभय चोरभय परमन्त्र परयन्त्र परतन्त्र परविद्या छेदय्  छेदय् स्वमन्त्र स्वयन्त्र स्वतन्त्र स्वविद्या प्रकटय् प्रकटय् सर्व अरिष्ठ नाशय नाशय सर्व शत्रु नाशय नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फ़ट् स्वाहा ||




|| इति श्री विभिषणकृतम् हनुमद् वडवानल स्तोत्रम् संपूर्णम्  ||




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||Shubham Bhavatu ||

Shri Dilip Raut
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